The continuous flowing Ganga walk started from Tarun Ashram. Bhikampura, Rajasthan. The motive of this walk is to ohiminate any possibility of third world war which might take place because of scarcity of waler and and to encourage water coriservation through water literacy. This will create peace in the country and connect masses with Ganga water has the best quality parameters among all waler The the types drinking water. or. It contains the magical property of ing all the microbes. No o other river around the world has this property to this extent as compared to Ganga water So koliang we have decled to share the knowledge aboul various dimensions of Ganga water to all the parts of country and to create awareness about water literacy in the country starting from Deepawali 2019 in the form of continuous flowing Ganga walk
This walk wil comprise of the community of people who are involved in water conservation and recharge work through conservation of Welis, stepwells, ponds, earthen bunda and lakes. It will comprise of of water illeracy for understanding. management of water resources. This walk will continue for full year till the coming 2020 (dev uthani ekadashi, sanvat 20771 al Tarun ashram in is to connect the and soveeegnity n Ganga sammelan. The further strategy will be decided there at TBS. The inspiration of this is walk society, saints and the goverment The walk will connect the Masses with river conserving the integrity
The effort will be to reach every distinct, city and village of the country. 101 groups will be organised for awareness compaigns. The walk will comprise of meetings seminars and workshops to rejuvenate the structures through shramdaan camps. The walk will work with institutions, goverment and society. It will connect the masses with water literacy talk. We consider all the rivers as Ganga in India. So an attempt to connect with all the rivers will be done through this walk.
The general discussion during this walk will be on water and human health, illegal mining and rivers, the separation of rainwater and polluted water, the availability of power and hydroelectricity, the relation between river and human rights, trees and water migrating people because of scarcity of water, climate change and refugees, the pressure on cilies due to migration and the tension among the villages
The solution of climate change, water scaroty and and water conservation is possible. The complex relation between rainfall cycle and crop cycle will be discussed in bref The walk will discuss the the wave ways to rejuvenate the groundwater aqurfers of the country and try to heal the Ganga river of its present condition from sickness to clean and free flowing state
The walk is not what an initiative of any particular NGO. There is no dependency on any organisation or the government for this walk. We call upon people to fund the walk by giving time, efforts, means and knowledge. Money is not the only way to contribute All Indian citizens are requested to contribute to the walk taking ownership and responsibility.
Proper management should be done to not mix the polluted water with the pious water. Proper laws should be made to protect the Ganga river and its sanctity. The work has been initiated by Ganga BBhakt Parishad (society of Ganga enthusiasts) Everybody is requested to join the walk and contribute in rejuvenating the pious river which gives salvation The walk is a water literacy walk, which will only succeed if people from all walks of life come together to contribute and join hands for a better future. Everybody has a right to to clean water if the society comes together the work of literacy and conservation of water resources will happen, It is our moral responsibility to contribute in this walk through our capabilities and resources. Jai Hind
सृष्टि का सबसे सुंदर ग्रह है। इतना सुंदर कि हमारी पूरी दुनिया ही इस पर निर्भर है। प्रकृति ने हमें आवश्यकता से कहीं अधिक दिया। नदियां, झरने, झरील पहाड़, पनत्त्पत्तियां, जीव जगत आदि राजकुछ। उससे भी चढ़कर प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ कृति मनुष्य भी इसी संतान है।
सृष्टि का सबसे सुंदर ग्रह है। इतना सुंदर कि हमारी पूरी दुनिया ही इस पर निर्भर है। प्रकृति ने हमें आवश्यकता से कहीं अधिक दिया। नदियां, झरने, झरील पहाड़, पनत्त्पत्तियां, जीव जगत आदि राजकुछ। उससे भी चढ़कर प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ कृति मनुष्य भी इसी संतान है।
पृथ्वी भारतवर्ष उसका सवरी शाहला हिस्सा और भारताची इसकी सबसे सावलीला है। परंतु में कुछ ऐसी परिस्थितियां बनी कि हम भारत यो लोग न केवल स्वर्य को भूल गए अपनाओं और योगालाओं के साथ अन्याय करने लगे। जिसके परिणाम स्वरूप हमने न केवल उपनिवेशवादी कानून, शिक्षा नीतियां, व्यवस्था को सतत राष राप से जारी रखा चल्कि इन पर्ताप्रा मायजूद कोई ठोस निर्णय लेने में अक्षम रहे। | आज एक ओर विकास के नाम पर एम अपने जीवन ताची को समाप्त करते जा रहे है और फिर दूसरी ओर उन पंचमहाभूतों की मरम्मत की बात करते हैं।
आज फरीदाबाद, जो दुनिया के सबसे पुराने पहाड़ जरावली की गोद में पसा है और जराफी दी हुई
शांत्री लेता है. वहीं दूसरी ओर दुनिया जी श्रेष्त नदियों में से एक यमुना एकनीकी
दुनिया की श्रेष्ठ उपजाऊ भूमि इसी हिस्से में आती है। फिर भी आज यह बीमार है। इलना
गंभीर बीमार कि इस जमी नाजा जल संरचनाएं सब खत्म हो गए है। नदियां, श्रीस, तालाब आदि या
तो सूख गए है या कब्जे कर लिए है या फिर गायरा फेंकने वाले स्थान वन गए हैं। इनकी सुगंध
अब दुर्ग में बदल गई है। यह जीवन में मृत्यु की यात्रा है और इसके परिणाम स्वरूप पूरा
फरीदाबाद बीमारियों की चपेट में है। पनी म हो रहे है। बडकल मेशी झीलें सूख गई है।
दुनिया जा रहा है। दूषित वायु फरीदाबाद की हो हो चुकी है। हरियाणा भारत में न्यूनतम
हरियाली वाला राज्य है और लगातार अपनी हरियाली पटाला गया है। नई बीमारियां पढ़ी है।
अरावली वन क्षेत्र को खत्म करने का खतरा मंडराता रहता है। 2041 एनसीआर ड्राफ्ट भी वह
सातरा और भी वड फरीदानाद डार्क जोन में घोषित किया जा चुका है। इस स्थिति में पारीदाबाद
बासी कहां जाएं? इस विषय को ध्यान में रखकर इस समस्या क समाधान, मंथन किया। । यह
निष्कर्ष निकला कि जब तक नम भूमि संरक्षण नहीं होगा तब तक फरीदाबाद रहने लायक स्थान
नहीं हो सकेगा। क्योंकि शुद्ध वेटलैंड ही प्रकृति के पोषण हेतु आवश्यक वरधाएं करने में
सदाम है। इस संदर्भ में राज्य और समाज की चेतना हेतु 'न भूमि' संरक्षण पदयात्रा जो कि
बड़खल झील से सूरजकुंड तक होगी और 16 दिसंबर 2022 सुबह 9:30 बजे करना तय हुआ है। आप सभी
बारत के सुधि जनों, सामाजिक संस्थाओं, शिक्षण संस्थानों, पर्यावरण प्रेमियों आदि से
अनुरोध है कि इस पदयात्रा में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें जिरासे हमारे फरीदाबाद का
आज और कल सुरक्षित हो सके। यह हंग साथ काम करना होगा। राम की सामूहिक जिम्मेदारी है
इसलिए हम सबको आगे आना होगा और
आपका साथी
जगदीश बौधरी अध्यक्ष
ग्रीन इंडिया फाउंडेशन ट्रस्ट एवं समस्त फरीदाबाद बासी
सभी साथियों को, सादर प्रणाम....... आज पर्यावरण किसी एक देश की समस्या नहीं बल्कि पैब्धिया है, सनी राष्ट्र अपने-अपने गर स्तर पर पर्यावरण के मुद्दे को लेकर गंभीर है, किंतु इस दिशा में हम पिछड़ते जा रहे हैं पर्यावरण प्रदूषण, जल दोहन, भूमि दोहन इतना ही नहीं हम नदियों के हत्यारे बन गए है, आज गंगा, यमुना आदि गदियों के अस्तित्य पर खतरा गहरा होता जा रहा है, पहाड़ सिगटते जा रहे हैं, जंगल रामाप्त होने से पशु-पक्षी विलप्ती के कगार मिट गया है।
पर पहुंच गए हैं, कितनों आश्चर्य मानब इन हालातों में भी बेफिक्र है, अनजान है, यह बहुत
ही चिंता का विषय है जिस को ध्यान में रख पिछले 5 वर्षों से ग्रीन इंडिया फांउडेशन
ट्रस्ट, राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करता रहा है, पर्यावरण और जल पर शोध करता रहा है,
लोगों को जागरूक करता रहा है, आज देश को आपके राजग दृष्टिकोण की आवश्यकता है प्रकृति का
कण-कण तुम्हें पुकार रहा है। पर्यावरण बचेगा तो हम बचेंगे...... इसी नारे के साथ ग्रीन
इंडिया फाउंडेशन ट्रस्ट आपको महाअभियान में आमंत्रित करता है।
धन्यवाद!
बड़खल झील के प्राकृतिक व पारिस्थितिक तंत्र की विशिष्टता को समझे बिना, इसका संरक्षण मात्र पर्यटन तक ही सीमित नहीं है। असलियत में यह हमारे जीवन और स्वास्थ्य से भी जुड़ा सवाल है। यही नहीं जैव विविधता के संरक्षण से भी जुड़ा है। इसलिए बड़खल पर की जाने वाली कोई भी कार्यवाही उसके जीवन का स्वरूप न बिगाड़े यह सवाल हमेशा ध्यान में रखना चाहिए।
गौरतलब है कि एक समय यही बभुना की उपविका के रूप में, प्रवासी और स्थानीय पक्षियों, जलीय जीव को प्राकृतवास भी प्रदान विद्यापीरती थी। बमुना की उपत्यका एवं स्थानीय वातावरण के अनुरूप यहां जो वाणी स्थानीय पक्षी बसेरा डाले रिहा करती सोनाकारण भलीभांति परिचित रहते थे, दूसरे इसी वजह से वह हमारे मित्र पक्षी सिद्ध होते थे। खासियत यह कि यहां रोजी पोस्टर भी आती थी और गौरैया जैसे धनी भी काफी संख्या में बसेरा बनाए रखती थी। यह दोनों पक्षी प्रजातियां टिग्री दल को परास्त करने में अहम भूमिका निभाती थी और उनके प्रकृति विरोधी भक्षण को शून्य बनाती थी। आज इसमें बगुला प्रजाति की संख्या बढ़ाना नहीं, अपितु मित्र पतियों के आगमन को सुगम बनाने की बेहद जरूरत है जो वातावरण को दूषित करने वाले कीटों का मक्षण कर सकें। बड़खल के विकास में प्रकृति का प्रारूप न विगते, इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए।
सरकार ने बड़खल की झाड़ियों को काटने की योजना बनाई या फिर नीम-पीपल जैसे उपयोगी पेड़ों को भी काटने की।
सरकार ने तो झाडियों की आड़ में नीम-पीपल जैसे शतायु एवं पक्षी प्रिय वृक्षों को भी काट दिया है। इससे
बड़खल का कल्याण होगा या सिर्फ ठेकेदारों का, यह बात सहज समझ में आ जाती है। वे वृक्ष जो प्रकृति
संरक्षण का प्राथमिक बिंदु हैं जल के मित्र हैं, पक्षी आवास है, बड़साल की सांस हैं, स्वास्थ्य हैं,
उनको क्यों काट दिया गया है? यह समझ से परे और दुर्भाग्यपूर्ण है। यह किस दृष्टि से बड़खल को बधाने और
उसके संरक्षण की योजना का विज्ञान है और कौन से जल विशेषज्ञों ने ऐसी सलाह दी, यह सवाल आज भी समझ से
बाहर है कि आखिर उनका मंतव्य क्या है?
साथ ही यह भी कि इन झाड़ियों, कीकर और पेड़ों को काटने का ठेका कितने में दिया है और इसके मूल्यांकन का गणित क्या है? यह भी जानना जरूरी है और इससे हुई आमदनी भी क्या और कितनी होगी और उसे सरकारी खजाने में भी जमा किया जाएगा या नहीं या फिर केवल राजस्थानी मुरंड, जो इस हेतु मंगाई जा रही है, का ही खर्चा लिखा जायेगा? यह सवाल भी अनसुलझा है।
जैसा कि ज्ञात है कि सरकारी योजनों में बड़खल में मुरंड डालने की योजना है। मुरंड या मुरंडा एक ऐसी मिट्टी है जो कि छोटे कंकड़ों के गलने से चूने के रूप में बदलने से बनती है। सीमेंट से तो पानी रिस भी सकता है परंतु गुरंड से नहीं। इसलिए इस पर कोई वनस्पति भी नहीं होती। क्या इन योजनाकारों को ऐसी जानकारी भी है कि इस मिट्टी का स्वभाव व मूल प्रवृत्ति प्रसार की है, राजस्थानी मिट्टी का स्वभाव भूगर्भ के अनुसार होगा। बड़खल में इस मिट्टी को डालना किसी भी दृष्टि से नम भूमि संरक्षण (wetland conservation) के अनुरूप नहीं है और वह उसको बढ़ावा भी नहीं देगी। इससे न तो कभी भूजल (ground water) बढ़ेगा और फिर इन हालात में झील की सततता और प्रकृति संरक्षण की बात बेमानी होगी ? यह इस योजना में शामिल विशेषज्ञों की विद्वता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। बड़खल ने सदैव अपने आपको क्षेत्रीय नहीं, अपितु राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत किया है। इसका इतिहास गवाह है-पारम्परिक जल संचय प्रणालियों के संरक्षण और रखरखाव का इतिहास विशेष रूप से बल्लबगढ़ के आस-पास
बड़खल झील के प्राकृतिक व पारिस्थितिक तंत्र की विशिष्टता को समझे बिना, इसका संरक्षण मात्र पर्यटन तक ही सीमित नहीं है। असलियत में यह हमारे जीवन और स्वास्थ्य से भी जुड़ा सवाल है। यही नहीं जैव विविधता के संरक्षण से भी जुड़ा है। इसलिए बड़खल पर की जाने वाली कोई भी कार्यवाही उसके जीवन का स्वरूप न बिगाड़े यह सवाल हमेशा ध्यान में रखना चाहिए।
उत्तर भारत में डल झील के बाद बड़खल झील ही लोगों की पसंदीदा जगह रही है और हरियाणा राज्य के भौगोलिक मानचित्र की पहचान भी वन कर राज्य के गौरव को बढ़ाया है। परंतु आज जिस प्रकार से बड़खल के विनाश का काम चल रहा है, इससे लगता है कि इसमें कोई राष्ट्रीय तो क्या राज्य स्तरीय भी अनुभवी लोगों की सलाह नहीं ली गई है। केवल क्षेत्रीय योजनाकार जिनकी विशेषज्ञता कंक्रीट के जाल बिछाने और सीवर बनाने की ही रही है, वे आज इस बड़खल के शिल्पकार बन रहे प्रतीत होते हैं। इसकी प्रबंध योजना उन लोगों के हाथ में क्यों है जो इस दिशा में काम करने वाली के मार्ग में अवरोध पैदा करते रहे हैं? इससे साबित होता है कि बड़खल की हत्या के जघन्य अपराध की ओर यह तथाकथित योजनाकार बढ़ रहे हैं।
इन योजनाकारों ने सीमेंट और सरिया की दीवारें चींचना शुरू कर दी हैं और पैदल पथ को चौड़ा करने के लिए उन नीम, पीपल, ढाक के पेड़ों को भी काट दिया गया है जो अभी सैकड़ों वर्ष जीते। ऐसी योजनाओं का आधार बड़खल का जल बढ़ाना है या सिर्फ जेयों का धन बढ़ाना? यह एक यक्ष प्रश्न है। ऐसी विचार शून्यता आज की अभियंत्रिकी शिक्षा और व्यवहार को दर्शाता है। एक प्राकृतिक झील को अप्राकृतिक उपचार का विज्ञान कौन से शास्त्र में सततता का सूत्र बताता है? पृथ्वी पर अभी ऐसा शास्त्र लिखे बिना ही इन योजनाकारों ने पढ़ लिया गया प्रतीत होता है।
अव बड़खल को पानीदार बनाने का ऐतिहासिक फार्मूला स्मार्ट सरकार ने ढूंढ निकाला है। इतिहास में पहली बार एक ऐसा सीवर ट्रीटमेंट प्लांट बनाया बन रहा है जिसमें इधर से सीवर चलेगा और उधर से शुद्ध मिनरल वाटर निकलेगा और यह प्रयोग विश्व में पहली बार बड़खल पर ही होगा क्योंकि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण और सर्वोच्य न्यायालय की बगल में यमुना में सीवर से गिरने वाले मिनरल वाटर ने यमुना जी को कितना चमकाया है यह तो हम देख ही चुके हैं। अब बड़खल में भी देखेंगे जिस प्रकार दिल्ली में यमुना जी में सीवर के शुद्ध जल के बाद अब यहां रोजाना मेला लगता है और लाखों लोग रोजाना यमुना जी में बुबकी लगाते हैं, आयमन करते हैं और सूर्य नमस्कार करने के बाद बोतलों में यमुना जल भरकर अपने घरों में ले जाते हैं ताकि शुभ कार्यों में प्रयोग ला सकें, उसी प्रकार अब बडखल में सीवर के मिनरल बाटर में लोग तैराकी करेंगे, नाय चलाएगे और घर भी भर कर ले जाएंगे। अब इस चमत्कार के लिए हम सब प्रतीक्षा करें क्योंकि यह स्मार्ट फरीदाबाद की स्मार्ट बडकल में जादुई छड़ी घूमने ही वाली है जिसके बाद यह फरीदाबाद के भूजल को सिंचित करेगी, पेड़ पौधों से लहलहाएगी, पक्षी कलरच करेंगे, साइबेरिया के पक्षी आकर यहां सेर करेंगे, जैव विविधता सयांधिक फलेगी-फूलेगी और इससे बढ़ कर भारत की सबसे साफ, सुंदर और सुगंधित झील होगी।
आज बडकल की हत्या के गुनहगार राज, समाज और सभी गूंगे बहरे नागरिक होंगे। भगवान सबको सद्बुद्धि दें और इस तथाकथित स्मार्ट शासन की स्मार्ट बड़खल की योजना से बड़खल को बचाएं।
बड़खल का पुराना प्रारुप बना रहे ऐसी ही प्रबंध योजना बनाई जाए। इस प्रबंध योजना में पक्षी विशेषज्ञों की विधिवत राय ले ली जाए। मात्र प्रशासनिक आदेश जन सहभागिता की परिचायक नहीं होते हैं। विषय विशेषज्ञों की राय ली जाए जिसमें जल, वृक्ष, भूगर्भ एवं अन्य विशेषज्ञों को जोड़ा जाए। बड़खल झील तो राष्ट्रीय स्तर पर नम भूमि संरक्षण के रूप में जल एवं पक्षी संरक्षण के रूप में विख्यात रही है। इसका पुराना इतिहास, प्रकृति संरक्षण केवल प्रकृति प्रेम की भावनाएं ही वापस लौटा सकती हैं।
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